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रविवार, 29 नवंबर 2015

भारत में असहिष्णुता है .[जनवाणी [पाठकवाणी ]में ३० नवम्बर २०१५ को प्रकाशित


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संविधान दिवस और धर्मनिरपेक्षता और असहिष्णुता पर संग्राम ये है आज की राजनीति का परिपक्व स्वरुप जो हर मौके को अपने लिए लाभ के सौदे में तब्दील कर लेता है .माननीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस मौके पर संविधान निर्माता के मन की बात बताते हैं वैसे भी इस सरकार के मुखिया ही जब मन की बात करते फिरते हैं तब तो इसके प्रत्येक सदस्य के लिए मन की बात करना जरूरी हो जाता है भले ही वह अपने मन की हो या किसी दुसरे के मन की .वे कहते हैं -
''संविधान निर्माता ने कभी भी ''धर्मनिरपेक्ष '' शब्द को संविधान में रखने के बारे में नहीं सोचा था , इसे तो १९७६ में एक संशोधन के जरिये शामिल किया गया किन्तु ये कहते समय उन्होंने संविधान की प्रस्तावना के सही शब्द पर गौर नहीं किया और बाद में अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए सही शब्द को अपना सुझाव बता वाहवाही लूटने का काम अपनी तरफ से कर गए .जबकि अगर वे ध्यान से संविधान की प्रस्तावना पढ़ते तो अपनी बात कहने से बच सकते थे और संविधान निर्माता के मन की बात का ढोल पीटने से भी .भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है -
''हम भारत के लोग भारत को एक प्रभुत्व संपन्न ,लोकतंत्रात्मक ,पंथनिरपेक्ष ,समाजवादी गणराज्य बनाने के लिए -दृढ़संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं .''
पर जिस बात पर संसद में बहस छिड़ी है उसके लिए संविधान में शामिल इस शब्द को घसीटना एक बेतुकी बात ही कही जाएगी क्योंकि संविधान में भले ही पंथनिरपेक्षता शब्द हो या धर्मनिरपेक्षता इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है फर्क पड़ता है केवल उस सोच से जो भारत में इंसान -इंसान को बाँटने का काम करती है और सब जानते हैं ये काम यहाँ कौन कर रहा है. इसके लिए किसी विशेष व्यक्ति -धर्म -समुदाय को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यहाँ बहुत से व्यक्ति -समुदाय इस काम में जुटे हैं जो स्वयं को ऊपर और दूसरे को नीचे मानते हैं और जिसे नीचे मानते हैं उसे ऐसा दिखाने से चूकते भी नहीं .वे कहाँ ये देखते हैं कि संविधान हमें इस बात की इज़ाज़त देता है या नहीं .उनके लिए स्वयं के विचार ही महत्वपूर्ण हैं और ये भी सत्य है कि यहाँ मुसलमानों को इस तरह के व्यवहार का सर्वाधिक सामना करना पड़ता है .उन्हें मांसाहारी होने के कारण बहुत से संकीर्ण सोच वालों द्वारा अछूत की श्रेणी में रखा जाता है और उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया जाता है .ये मैंने स्वयं देखा है इसीलिए कह रही हूँ .मेरे साथ पढ़ने वाली एक छात्रा ने स्कूल में अपने बर्तनों का इस समुदाय की लड़की द्वारा इस्तेमाल होने पर स्कूल में हंगामा खड़ा कर दिया था .अब इसे क्या कहा जायेगा जब तक की उसे ये सोच उसके घर परिवार से नहीं मिली होगी तब तक वह ऐसा नहीं कर सकती थी .इसलिए इस समय जो यह संविधान में इस शब्द को लेकर बहस खड़ी कर हमारी सरकार गैरजरूरी बहस शुरू करना चाहती है उसका कोई औचित्य ही नहीं है और असहिष्णुता के लिए इसकी कोई जिम्मेदारी भी नहीं है .अगर सरकार वाकई देश में फैली असहिष्णुता के प्रति गंभीर है तो पहले संविधान की आत्मा को समझे और इसके निर्माताओं के ह्रदय की भावनाओं को जो देश में प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन देने की भावना रखती है और एक गरिमामय जीवन सम्मान चाहता है और आपसी प्रेम व् सद्भाव न कि बात बात में भारत छोड़े जाने की धमकी और सामाजिक जीवन में भेदभाव .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

अगर मुस्लमान को असहिशुनता का सामना करना पड़ता है तो मुसलमानों की आबादी हिंदुस्तान में इतनी कैसे बढ़ रही है ? और बांग्लादेश , पाकिस्तान वगैरह में हिन्दू कहा गए ? सदन में असहिशुनता के लिए चर्चा कौन चाहता है ? मौजूदा सरकार ? या इसको ज़बरदस्ती इस गैरज़रूरी बहस में घसीटा गया ?