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गुरुवार, 20 मार्च 2014

जागरण जंक्शन ब्लॉग्स में २० मार्च २०१४ को प्रकाशित

राजनीति की भांग से भाजपाई मदहोश ,
मोदी चाय पीने को खो रहे अपने होश .
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अटल पड़े एकांत में मांगें सबकी खैर ,
शुकर करें भगवान् का बने जो अबके गैर .
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लाल कृष्ण की आँख से नित्य बहता नीर ,
मोदी लहर के अंधों को दिखे न उनकी पीर .
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जोशी सुरीली बांसुरी हो गयी अब बेसुर ,
आर.एस.एस.ने छीन ली वो आवाज़ मधुर .
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टंडन बिलखत फिर रहे बातें करें उखड ,
अध्यक्ष जी ने आगे बढ़ काटी उनकी जड़ .
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जेटली ए.सी.कमरे से खुली धूप में आये ,
शायद मोदी डोर से लोकसभा मिल जाये .
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अपनी लहर है बह रही पर मोदी घबराये ,
काशी सुकून होगी दल की उन्हें तो घर ही भाये .
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जागरण जंक्शन ब्लॉग्स में २० मार्च २०१४ को प्रकाशित 

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शालिनी कौशिक
[कौशल ]

बुधवार, 12 मार्च 2014

दैनिक जागरण पाठकनामा में १२ मार्च २०१४ को प्रकाशित

दैनिक जागरण पाठकनामा में १२ मार्च २०१४ को प्रकाशित
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भाजपा आजकल सर्वाधिक डिमांड में है .जिसे देखो सिर के बल इसमें प्रवेश पाने को भागा जा रहा है और यह प्रवेश यदि कोई यह कहे कि वह देशसेवा के लिए करने जा रहा है तो व्यर्थ भुलावे में डालने की कोशिश कही जायेगी क्योंकि देशसेवा जैसी भावना आजकल के इन राजनेताओं में होना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है ये सब तो मात्र इसलिए हो रहा है क्योंकि जिस दल से कथित देशभक्त ,स्वाभिमानी ताल्लुक रखते हैं अब उस दल को एक डूबते हुए जहाज के रूप में आंक रहे हैं और इसलिए तेजी से भागते हुए उस जहाज में चढ़ने में लगे हैं जिसकी तली में नरेंद्र मोदी जी पहले ही छेद कर चुके हैं और मीडिया का एक बड़ा तबका उनकी लहर बताकर इन सभी को भरमाने में लगा है और ये भागमभाग तभी तक जारी है जब तक टिकट वितरण जारी है उसके बाद किसी के न स्वाभिमान को ठेस लगेगी और न ही किसी को देशभक्ति की सुध रहेगी और ये सब उन नरेंद्र मोदी की लहर के लिए किया जा रहा है जिनके लिए भाजपा स्वयं एक सुरक्षित सीट ढूंढने में अपने पुराने कर्मशील मुरली मनोहर जोशी को ठेस पहुँचाने में लगी है .कहने को नरेंद्र मोदी की लहर है और उनके दमपर न केवल भाजपा उछाल रही है वरन बहुत से अन्य दलों के नेता उन दलों से भागे आ रहे हैं जिनमे उन्हें टिकट की घोषणा तक हो चुकी है अब अगर नरन्द्र मोदी जी की वास्तव में इतनी तेज लहर है तो क्यूँ उन्हें सुरक्षित सीट देने की व्यवस्था की जा रही है और क्यूँ मुरली मनोहर जोशी से जबर्दस्ती उनकी सीट ली जा रही है ?जिस तरह की लहर मोदी की कही जा रही है उसमे या तो उन्हें अपने राज्य से ही लड़ना चाहिए या फिर किसी ऐसी सीट से लड़ने की हिम्मत दिखानी चाहिए जहाँ आज तक भाजपा का खाता खुला ही न हो .आखिर मोदी को अपने राज्य से या फिर किसी असुरक्षित सीट से खड़े होने में डर क्यूँ है क्या वे नहीं जानते -
गिरते हैं शह-सवार ही मैदाने जंग में ,
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले .''
ये आदर्श तो मोदी को उपस्थित करना ही चाहिए आखिर जिस जहाज पर नेताओं की फ़ौज सवार हो रही है उसके कैप्टेन तो मोदी ही हैं और यदि कैप्टेन ही अपना हौसला खोये हुए हो तो बाकी यात्रियों का क्या होगा ?
शालिनी कौशिक
[एडवोकेट ]
कांधला [शामली ]

सोमवार, 10 मार्च 2014

दैनिक जागरण पाठकनामा में १० मार्च २०१४ को प्रकाशित

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चुनावों की उद्घोषणा हो गयी और सत्ता-सुंदरी को पाने में लगे देश के दो प्रमुख दल अपने कारनामे जनता के समक्ष खुलेआम करने लगे .केजरीवाल की आप तो आयी ही भारतीय राजनीति में उथल -पुथल मचाने है और उसे उसके मंसूबों में सफल होने में भाजपा इस तरह से सहयोग करेगी इसकी झलक तो बहुत पहले ही दिल्ली विधानसभा में भाजपा की किरकिरी में दिखाई दे गयी थी .आप राजनीति में नयी है और उसका अभी इसी कारण कोई राजनैतिक इतिहास नहीं है इसलिए वह जिस पर जो चाहे इलज़ाम लगा सकती है और इसलिए उसने अपने को प्रसिद्ध करने के लिए कॉंग्रेस और भाजपा इन दोनों दलों को घेरने व बदमान करने की रणनीति अपनायी और चूँकि राजनीति के दिग्गज जानते हैं कि इस तरह की आरोपों से राजनीतिज्ञों को दो-चार होना ही पड़ता है इसलिए वे मीडिया के सामने ही अपनी भड़ास निकाल लेते हैं अंदर से इस सम्बन्ध में कोई वैरभाव नहीं रखते क्योंकि खुद वे भी तो यही सब करते ही रहते हैं किन्तु जहाँ इस तरह के आरोपों पर पार्टी व् उसके कार्यकर्ता गम्भीर हो तो वहाँ चोर की दाढ़ी में तिनका नज़र आना स्वाभाविक है .आज तक देश में हुए विकास कार्यों को नकारकर बस अपने गुजरात के विकास के गुणगान करने वाले मोदी के गुजरात विकास मॉडल पर ही जब केजरीवाल ने ऊँगली उठा दी और उसकी असलियत जनता के सामने रखने की कोशिश की तो मोदी का और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार प्रोजेक्ट करने में लगे भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं का तिलमिलाना स्वाभाविक भी था और दाल के भीतर के काले को दिखने के लिए पर्याप्त भी .अब देश भर में आप व् भाजपा भिड़ी हुई है और वह जनता जो इनके हाथों में देश सौंपने के मंसूबे रखती है वह सोच के गहरे भंवर में आखिर देश के सँभालने के बड़े बड़े दावे करने वाले इन परिस्थितियों तक को नहीं संभाल पा रहे ये देश क्या खाक संभालेंगे .
शालिनी कौशिक
[एडवोकेट ]
कांधला [शामली ]

मंगलवार, 4 मार्च 2014

जागरण जंक्शन ब्लॉग्स में ४ मार्च २०१४ को प्रकाशित


Assam woman dies of burn wounds, police say she's not the one who kissed Rahul

मीडिया और सियासत यदि आज के परिप्रेक्ष्य देखा जाये तो एक सिक्के के दो पहलू बनकर रह गए हैं .आज की परिस्थितियों में मीडिया पूर्णरूपेण इसी ताक में लगा है कि किसी भी तरह कोई भी मुद्दा सियासी राहों में उछलकर हड़कम्प मचा दिया जाये.कोई वेबसाइट और कोई भी समाचार आज इस समाचार को अपने मुख्य पृष्ठ पर स्थान देने से नहीं चूका कि ''राहुल गांधी को चूमने पर पति ने की हत्या ''.राहुल गांधी आज अपनी कर्मशील कार्यशैली और जगह जगह जाकर जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं को जानकर उनके निवारण सम्बन्धी कार्यक्रम को अपने दल के घोषणा पत्र में स्थान देने में व्यस्त हैं और उनका यह कार्यक्रम जनता में खासा लोकप्रिय हो रहा है किन्तु मीडिया ये सब नहीं चाहता उसकी चाहत एकमात्र यही है कि ''जिसे मीडिया उभारे जनता उसे ही स्वीकारे '' और इसलिए बार-बार राहुल गांधी का नाम उछालकर उनके अभियान में रुकावटें पैदा करने में लगा है नहीं देख रहा है कि वह अपने मुख्य कर्त्तव्य से इस नाते विमुख हो रहा है जिसका आगाज़ और अंजाम दोनों ही सच्चाई और ईमानदारी को साथ लेकर अन्याय व् अत्याचार का नाश करने में है .
औरत आरम्भ से ही आदमी द्वारा अपनी संपत्ति की तरह समझी गयी ,गुलाम से बढ़कर उसकी कभी आदमी ने कोई हैसियत होने नहीं दी .आदमी के अनुसार औरत बस उसकी कठपुतली बनकर रहे और अपना कोई अलग अस्तित्व कभी न समझे .सोमेश्वर चुटिया एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिसने पुरुष सत्तात्मक समाज की इसी मानसिकता का प्रतिनिधित्व कर अपनी पत्नी बॉँटी चुटिया को जिन्दा जलाकर मार डाला ,अब इस बात के पीछे ये कहा जा रहा है कि उसने उसे राहुल गांधी के कार्यक्रम में जाने से रोका था ,उसने उसे राहुल गांधी को चूमने के कारण जलाकर मार डाला .पडोसी ये कारण कह रहे हैं तो प्रशासन उसकी वहाँ उपस्थिति से ही इंकार कर रहा है. कोई मतलब नहीं इन बातों का ,मामला सीधा और साफ है पुरुष और नारी का सम्बन्ध ,जिसे नारी द्वारा देवता का दर्जा दिया गया उसी ने नारी को पैर की जूती समझा ,कोई नहीं कह रहा कि क्या हक़ बैठता है पुरुष को नारी को जिन्दा मार देने का ?क्या नारी का जीवनदाता वह है ?अगर नारी का यह आचरण उसे नापसंद है तो वह स्वयं को उससे अलग कर सकता है ,स्वयं का वह जो चाहे कर सकता है किन्तु कोई अधिकार उसे इस बात का नहीं है कि वह उसे इस तरह से या कैसे भी ज़िंदगी से महरूम कर दे ,पर कहीं भी यह आवाज़ नहीं उठायी जा रही है .वही मीडिया जो नारी सशक्तिकरण के लिए कभी बेटी ही बचाएगी जैसे अभियान चलाता है ,तो कभी मोमबत्ती जलाकर सोये समाज को जागने के लिए ललकारता है वह ऐसे मामले में सही पथ का अनुसरण क्यूँ नहीं करता ?क्यूँ नहीं इस समाचार का शीर्षक ''पति द्वारा पत्नी की जलाकर हत्या ''रखा गया ?पत्नी वह जो कि सामान्य घरेलू महिला न होकर बेकाजन ग्राम पंचायत की पार्षद थी ,क्यूँ मीडिया को नहीं दिखी यहाँ विकास की राहों पर कदम बढ़ाती पत्नी के लिए पति ईर्ष्या ?समाचार का शीर्षक कहें या मामले का एकमात्र सत्य ,वह यही है कि ''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''क्यूँ मीडिया ने इस सत्य को नहीं स्वीकारा ?क्यूँ नहीं कहा कि आदमी को तो बस एक बहाना चाहिए औऱत पर कहर ढाने का और औरत जहाँ चूक जाती है वहाँ ऐसा ही अंजाम पाती है और हद तो ये है कि ऐसे समय पर हर वह ऊँगली जिसे किसी को निशाना बनाना हो वह उस तरफ उठकर अपना उल्लू सीधा कर जाती है और यही यहाँ हो रहा है .पुरुष के दमनात्मक रवैये की शिकार औरत की हालत का जिम्मेदार राहुल गांधी को बनाकर अपना उल्लू ही तो सीधा किया जा रहा है .
''औरत पे ज़ुल्म हो रहे ,कर रहा आदमी ,
सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं .
गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलाना
ये कर रहे हैं काम ,मगर मानते नहीं .''
[जागरण जंक्शन ब्लॉग्स में ४ मार्च २०१४ को प्रकाशित ]

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शालिनी कौशिक
[कौशल ]