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सोमवार, 25 मई 2015

[PUBLISHED IN JANVANI {PATHAKVANI }ON 25.MAY.2015 ]



हरिश्चंद्र ''नाज़'' के ये शब्द आज के एक समाचार पर ध्यान जाते ही मेरे जहन में उभर आये ,शब्द कुछ यूँ थे -
''यूँ गुल खिले हैं बाग़ में ख़ारों के आस-पास ,
जैसे कि गर्दिशें हों सितारों के आस-पास .
रौनक चमन में आ गयी लेकिन न भूलना
शायद खिज़ा छुपी हो बहारों के आस-पास .''
और समाचार कुछ यूँ था -
''महंगाई पर काबू पाना सरकार की अहम उपलब्धि -जेटली ''
और महंगाई पर काबू पाना ऐसा ही गुल है जो वर्तमान सरकार जैसी खार के पास खिलने की कोशिश में है किन्तु जैसे कि खार में गुल नहीं खिलते ऐसे ही वर्तमान सरकार द्वारा महंगाई पर काबू जैसे गुल खिलाने की आशा ही व्यर्थ है और अरुण जेटली जी को महंगाई काबू में दिख रही है वह महंगाई जो इस वक्त पिछली यू.पी.ए.सरकार की अपेक्षा भी दिनों दिन तरक्की की राहों पर जा रही है .अगर हम अपनी रोज़मर्रा की चीज़ों का ही आकलन करें तो हमें साफ नज़र आता है कि महंगाई की स्थिति क्या है -अरहर की दाल जो इस सरकार से पहले हमें ७२ रूपये किलो मिल रही थी वह अब १०० रूपये किलो से ऊपर जा रही है .सब्जियां जो पहले कम भाव पर मिलती दिख जाती थी अब कोई भी कम दाम में नहीं मिलती .प्याज़ १२ रूपये किलो की जगह अब २५ रूपये किलो मिल रहा है .फलों में चीकू २० की जगह ४० के भाव में बिक रहा है .रही पेट्रोल -डीज़ल की बात तो जो फायदा इसका अपनी गाड़ी इस्तेमाल करने वालों को हुआ है वो फायदा आम जनता को नहीं क्योंकि किरायों में कहीं कोई कमी नहीं हुई है .
देखा जाये तो मोदी सरकार अभी तक अपने हर वायदे पर खोटी ही साबित हुई है क्योंकि काला धन लाने का वायदा इन्होने खुद ही तोड़ दिया ,अच्छे दिन लाने का इनका इरादा प्रकृति ने तोड़ दिया और जितने किसानों को इनके कार्यकाल के आरम्भ में ही आत्महत्या को गले लगाना पड़ गया उतना आज तक किसी सरकार के कार्यकाल में नहीं करना पड़ा विशेषकर पश्चिमी यूपी के किसानों को .हाँ इतना अवश्य है कि इस सरकार ने इस तरह की परिस्थितियां शायद पहले ही भांप ली थी और इसलिए धारा ३०९ द्वारा घोषित आत्महत्या के अपराध को अपराध की श्रेणी से अलग किये जाने की पहल कर ली थी .ऐसे में जेटली जी द्वारा महंगाई कम होने का बखान और उसका श्रेय मोदी सरकार को देना ऐसे ही कहा जायेगा जैसे ये सब एक झूठ की रात का चाँद ही हो किन्तु अभी इस स्थिति पर अफ़सोस ही किया जा सकता है और आगे आने वाली सरकार से उम्मीद .जो कि कभी भी पूरी होनी मुश्किल है क्योंकि हर सरकार बनने से पहले आम जनता की होती है और बाद में पूंजीपतियों की .इसलिए ए .बी.भारतीय के शब्दों में बस यही कहा जा सकता है -
''झूठ की रात के हर चाँद को ढल जाने दो ,
सच के सूरज को अंधेरों से निकल आने दो ,
धुल कितने ही अज़ाबों की जमीं है इस पर
आज इस दिल को ज़रा अश्कों से नहलाने दो .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
[PUBLISHED IN JANVANI {PATHAKVANI }ON 25.MAY.2015 ]

शुक्रवार, 22 मई 2015

[PUBLISHED IN JANWANI''S PATHHAKVANI ON 22MAY2015]


good servant but a bad master -सोशल साइट्स
जनलोकपाल का मुद्दा और जनांदोलन कोई ऐसी नयी बात नहीं थी पहले भी ऐसे बहुत से मुद्दे लेकर जनांदोलन होते रहे  और थोड़ी बहुत असहज परिस्थितियां सरकार के लिए उत्पन्न करते रहे किन्तु यह आंदोलन अन्ना और केजरीवाल की अगुआई में एक ऐसा आंदोलन बना कि सरकार की जड़ें हिला दी कारण था इसका सोशल साइट्स से भी जुड़ा होना और सोशल साइट्स के माध्यम से जनता के एक बहुत बड़े वर्ग की इसमें भागीदारी और इसी का परिणाम रहा दशकों से लटके जनलोकपाल के मुद्दे पर सरकार का सकारात्मक कदम उठाना।
रेप ,गैंगरेप रोज़ होते हैं थोड़ी चर्चा का विषय बनते हैं और फिर भुला दिए जाते हैं किन्तु १६ दिसंबर २०१२ की रात को हुआ दामिनी गैंगरेप कांड देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को हिला गया और इसका कारण भी वही था सोशल साइट्स ,सोशल साइट्स के माध्यम से रातो रात ये खबर सारे विश्व में फ़ैल गयी और इन सोशल साइट्स ने ही जगा दी संवेदना सदियों से सोयी उस दुनिया की जो रेप ,गैंगरेप की दोषी पीड़िता को ही मानते रहे सदा सर्वदा और पहली बार दुनिया उठ खड़ी हुई एक पीड़िता के साथ इस अपराध के खिलाफ उसके लिए न्याय की मांग करने को .
महंगाई ,भ्रष्टाचार ,महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार मुद्दे पहले भी थे और ऐसी ही निन्दित अवस्था में थे जैसे अब हैं लेकिन सोशल साइट्स ने यहाँ भी अपना सशक्त योगदान दिया और उखाड़ फेंका दस साल से जमी यू,पी,ए.सरकार व् १५ साल से दिल्ली में जमी शीला दीक्षित सरकार को .
किन्तु ऐसा नहीं कि सोशल साइट्स केवल सोशल ही हों, ये सामाजिक रूप से यदि सकारात्मक कार्य कर रही हैं  तो असामाजिकता में भी पीछे नहीं हैं .फेसबुक ट्विटर ऐसी सोशल साइट्स  बन चुकी हैं जिनका इस्तेमाल न केवल समाज को जोड़ने में किया जा रहा है बल्कि समाज तोड़ने में भी ये पीछे नहीं हैं -धार्मिक उन्माद फैलाना हो तो फेसबुक ,साम्प्रदायिक दंगे करवाने हों तो ट्विटर ,लड़की को बहकाना हो तो फेसबुक ,लड़के को पागल बनाना हो तो फेसबुक ,और ये सब साबित होता है इन समाचारों से जो आये दिन हम पढ़ते हैं समाचारपत्रों में ,देखते हैं अपने आस पास -
*मंगलवार २९ जुलाई २०१४ का अमरउजाला इन सोशल साइट्स की असलियत से जुडी तीन ख़बरें प्रकाशित करता है -
१-खटीमा [ऊधमसिंह नगर ]-फेसबुक पर सहारनपुर दंगे से सम्बंधित फोटो टैग कर धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के आरोप में पुलिस ने एक युवक को गिरफ्तार किया है .
२-सहारनपुर में दंगों के समाधान के रूप में गुजरात मॉडल की वकालत करने वाले भाजपा विधायक व् पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सीटी रवि बाद में अपने ट्वीट पर सफाई देते नज़र आये .
३-इंदौर-२३ वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर युवती का फेसबुक पर फ्रेंड बने युवक ने बुलाकर धोखे से अश्लील वीडियो बनाया .
**मेरठ में भारत से जुडी गोपनीय सूचनाये हासिल करने के लिए सोशल साइट्स ने युवतियों को खास ट्रेनिंग दे रखी है यह खुलासा इंटेलिजेंस द्वारा विज्ञानं शिक्षक दीपक शर्मा से की गयी पूछताछ में हुआ है उनसे एक युवती रानी ने चैटिंग में अपना नाम रेनू रख कहा -
''साइंस से प्यार करती हूँ इसलिए आपको बनाया दोस्त .''
यही नहीं सेना के और भी जवानों को भेजी फ्रेंड रिक्वेस्ट .
यही नहीं आज हाईटेक युवाओं पर आतंकियों की नज़र है और वे इन सोशल साइट्स के माध्यम से इनसे जुड़ रहे हैं .
ये सोशल साइट्स आज हर तरह के काम कर रही हैं एक तरफ ये लोगों की मददगार भी बन रही हैं और एक तरफ चैन हराम करने वाली  भी .यूनिवर्सिटी ऑफ़ अलबामा के असोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ.पाविका शेल्डन ने बताया कि शोध में शर्मीले लोग फेसबुक पर ज्यादा वक्त बिताते हैं .साथ ही एक नए शोध के मुताबिक सोशल मीडिया पर वजन घटाने के तरीके भी लोग सीख रहे हैं लन्दन के इम्पीरियल कालेज में १२ शोध का साझा नतीजा यही है कि सोशल मीडिया से मोटापा घटाने में मदद मिल रही है .साथ ही हमारी सरकार भी इस और अब सक्रियता दिखाकर जनता की मददगार बन रही है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह है -

ट्विटर पर अखिलेश चौंका देंगे आपको

ट्वीट करते ही आया सीएम का जवाब
चार दिन बीत चुके थे। वह सारी भाग-दौड़ कर चुका था। यहां तक कि लाइनमैन को घूस देने को भी तैयार था। लेकिन कोई भी उसके घर की बिजली ठीक करने को तैयार नहीं था।
आखिर पांचवे दिन उसने गुस्से में उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ट्वीट किया। उसने लिखा कि 'नोएडा सेक्टर 52 में पश्चिमांचल विधुत के जेई ने मुझसे घूस मांगी है और चुनौती दी है कि जो करना है कर लो।'
आपको जानकर हैरानी होगी कि उसी दिन शाम को चार बजे मुख्यमंत्री कार्यालय से जवाब आया कि आप अपना फोन नंबर भेजें।
इस प्रकार आज ये सोशल साइट्स दोस्त व् दुश्मन दोनों रूप में हैं जिनसे न मिलते बनता है न बिछड़ते ,न निगलते बनता है न उगलते ,समझ का इस्तेमाल हो तो सही और न हो तो गलत ये विश्वास बनाती भी हैं और बिगाड़ती भी ,सम्बन्ध बनाती भी हैं और तोड़ती भी ,एक तरफ हम इनके माध्यम से विश्व से जुड़ रहे हैं किन्तु ये भी सच्चाई है कि इन्हीं के माध्यम से अपने घर ,समाज से कट रहे हैं उन्हें तोड़ रहे हैं .इसलिए इनके बारे में ,जैसे विज्ञानं के लिए कहा गया है कि -
''science is a good servant but a bad master .''
ऐसे ही इन सोशल साइट्स के लिए भी कहा जा सकता है -
''social sites are good servant but bad master .
अर्थात इन्हें यदि हम अपने ऊपर हावी न कर अपनी समझ से इस्तेमाल करते हैं तो ये सही और यदि इन्हें हावी कर इनके हिसाब से चलते हैं तो गलत .वास्तव में सोशल होना हम पर निर्भर है ,समाज चलना व् समभलना हम पर निर्भर है इन साइट्स पर नहीं ये केवल हमारे हाथ में है कि हम इनके माध्यम से समाज की मदद करते हैं या उसका चैन हराम करते हैं .





फेसबुक दीवार
दीवार
मेरी
आपकी
पडोसी की
हर किसी की .
......................
हिफाज़त करे
मेरी
आपकी
पडोसी की
हर किसी की .
............................
राहत की साँस
मेरी
आपकी
पडोसी की
हर किसी की .
...........................
श्रृंगार भीतरी ,शान बाहरी,
मेरी
आपकी
पडोसी की
हर किसी की .
......................
अब बन गयी
ज़रुरत
दिलों की भड़ास की ,
उत्पाद प्रचार की ,
वोट की मांग की ,
किसी के अपमान की ,
किसी के सम्मान की .
..................................
भरा जो प्यार दिल में
दिखायेगा दीवार पर ,
भरा जो मैल मन में
उतार दीवार पर ,
बेचना है मॉल जो
प्रचार दीवार पर ,
झुकानी गर्दन तेरी
लिखें हैं दीवार पर ,
पधारी कौन शख्सियत
देख लो दीवार पर .
.........................................
मार्क जुकरबर्ग ने
संभाला एक मोर्चा ,
देखकर गतिविधि
बैठकर यही सोचा ,
दीवार सी ही स्थिति
मैं दूंगा अंतर्जाल पर ,
लाऊंगा नई क्रांति
फेसबुक उतारकर ,
हुआ कमाल जुट गए
करोड़ों उपयोक्ता ,
दीवार का ही काम अब
फेसबुक कर रहा ,
जो चाहे लिख लो यहाँ ,
जो चाहे फोटो डाल लो ,
क्रांति या बबाल की
लहर यहाँ उफान लो ,
करे कोई ,भरे कोई ,
नियंत्रण न कोई हद ,
जगायेगा कभी लगे
पर आज बन गया है दर्द .
..........................................
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
[PUBLISHED IN JANWANI''S PATHHAKVANI ON 22MAY2015]