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शनिवार, 2 नवंबर 2019

राहुल गांधी के साथ आज पाठक वाणी


संविधान का अनुच्छेद 21 भारतीय नागरिकों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है और इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं.

और यह अधिकार एक सामान्य नागरिक को मिला है या नहीं इसकी बात करना तो दूर की बात है जब यह अधिकार देश की प्रमुख पार्टी काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान में सांसद राहुल गांधी जी तक को नहीं मिला है और इसका सबूत यह है -

नई दिल्ली: बीजेपी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बार-बार विदेश यात्राओं की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है. पार्टी के प्रवक्ता जीएवएल नरसिम्हा राव (G. V. L. Narasimha Rao) ने कहा है कि राहुल गांधी को संसद में इसकी जानकारी देनी चाहिए. बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा क्या महान रहस्य है कि राहुल गांधी लोकसभा सचिववालय को इसकी जानकारी नहीं दे सकते हैं. क्या वह विदेश में 'लग्जीरियस ट्रिप' (सैर-सपाटे) के लिए जाते हैं. राव ने पूछा, जनता का प्रतिनिधि और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के नाते उनसे उम्मीद की जाती है कि वह इन यात्राओं की डिटेल दें बजाए इसके कि उन पर रहस्य का पर्दा डाले रहे हैं. नरसिम्हा राव ने इस बात की भी जानकारी दी कि राहुल गांधी पिछले 5 साल में 16 बार विदेश यात्राओं पर गए हैं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की इन विदेश यात्राओं का क्या रहस्य है? क्या वह किसी गुप्त मिशन में शामिल हैं जिसे देश और उनकी खुद की पार्टी को जानना चाहिए? इन 16 विदेश यात्राओं में 9 के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

     पहली बात तो यह कि जी वी एल नरसिम्हा राव जी चाहते हैं कि राहुल अपनी विदेश यात्राओं का ब्यौरा सार्वजनिक करें और ऐसा न होने पर वे अपनी पार्टी भाजपा की रणनीति के तहत उन्हें देशद्रोही करार दिए जाने की कोशिश करते हैं और इसी कोशिश के क्रम में वे उनकी विदेश यात्राओं को सीक्रेट मिशन का दर्जा देते हैं, जबकि किसी भी कानून में यह नहीं कहा गया है कि देश के राजनेता इस तरह व्यक्तिगत यात्रा का ब्यौरा सार्वजनिक करें, किन्तु समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी क्यूँ अपने खिलाफ इस तरह बकवास करने वालों को देश के कानून के अनुसार नहीं घेरते.

       भारतीय दंड संहिता की धारा 499 कहती है कि -

" जो कोई बोले गए या पढे जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, एतसिमन पश्चात अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है. "

     और इसके अनुसार नरसिम्हा खुले तौर पर राहुल गांधी की मानहानि कर रहे हैं और पूरी कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय भोली जनता के मन में राहुल गांधी के प्रति संदेह उत्पन्न किया जाए और उनकी लोकप्रियता की अपहानि की जाए, ऐसे में राहुल गांधी का कर्तव्य बनता है कि वे देश के कानून को महत्व देते हुए गलत लोगों के कुत्सित इरादों को चोट पहुंचाने के लिए आगे आएं और बेवजह उन्हें कानूनी मामलों में घसीट कोर्ट में खड़े करने वालों को और गलत बयानबाजी करने वालों को देश और देशवासियों का हित देखते हुए मानहानि के लिए कोर्ट में पेश कर अन्याय का मुँहतोड़ जवाब दें. साथ ही दिखा दें कि जीवन को गरिमा से जीने का अधिकार एक आम भारतीय की तरह वे भी रखते हैं और जब तक वे किसी कानून का उल्लंघन नहीं करते हैं तब तक भारतीय जनता के बीच उन्हें गलत साबित करने की कोई भी भाजपाई कूटनीति सफल नहीं होने दूँगा.
 

   शालिनी कौशिक एडवोकेट

    (कानूनी ज्ञान)

   

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

दैनिक जनवाणी में प्रकाशित आर. एस. एस. की लाठी


बयान / भागवत ने कहा- भारत हिंदुओं का देश, इसीलिए दुनिया में सबसे सुखी मुसलमान यहां मिलेंगे.

     देश पर जान कुर्बान करने वाले, देश का संविधान बनाने वाले, देश का नव निर्माण करने वाले जिस भावना के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगा गए उसे मिटाने के लिए आरंभ से प्रयत्नशील आर. एस. एस. को आखिर अपने इरादों में सफल होने का अवसर भारतीय जनता ने दे ही दिया और आर. एस. एस. प्रमुख मोहन भागवत को उस देश को एक धर्म विशेष का कहने का मौका मिल गया जिसके लिए वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को मद्देनजर रखते हुए देश के संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान की उद्देशिका में ही निम्न व्यवस्था की गई थी -
     "हम भारत के लोग, भारत को एक ( सम्पूर्ण प्रभुत्व - संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :

 सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय:

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता :

प्रतिष्ठा और अवसर की समता

प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में

व्यक्ति की गरिमा और

(राष्ट्र की एकता और अखंडता) सुनिश्चित करने वाली बंधुता

बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्दवारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

  और अब जब देश की नयी सरकार की जड़ें ही जहां से प्रस्फुटित हुई हैं वहां से इस देश को मात्र हिंदुओं का देश कहा जा रहा है तो ऐसे में कहा जा सकता है कि देश की वह मूल भावना जो हमारे संविधान की नींव थी, अपने पराभव काल की ओर कदम बढ़ा चुकी है ऐसे में हमारा संविधान भी नहीं टिक पाएगा इस संशय को लेकर चिंता के बादल घिर आना कुछ गलत तो नहीं कहा जा सकता है.


शालिनी कौशिक एडवोकेट

(कौशल)


रविवार, 11 अगस्त 2019

लड़कियां सम्पत्ति?..... दैनिक जनवाणी में प्रकाशित


  मोदी और शाह की जोड़ी द्वारा जब से कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35 A हटाया गया है सारे देश में एक चर्चा गर्म है - "कश्मीरी लड़कियों से शादी करने की" और न केवल आम जनता बल्कि सत्तारुढ़ पार्टी के जिम्मेदार नेता भी इस हवन में अपनी आहुति दे रहे हैं. भाजपा के उत्तर प्रदेश के खतौली क्षेत्र के विधायक विक्रम सिंह सैनी कहते हैं कि  "अब हर कोई गोरी कश्मीरी लड़कियों से शादी कर सकता है, " और हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि "अपने यहां कम पड़ेगी तो कश्मीर से मंगा लेंगे,".
          सवाल ये उठता है कि क्या वाकई लड़कियाँ कोई चीज़ या कोई सम्पत्ति हैं कि उनका जिसने जैसे चाहा इस्तेमाल कर लिया और ऐसा नहीं है कि यहां बात केवल भोली नादान लड़कियों की है बल्कि यहां हम बात ऐसी लड़कियों की भी कर रहे हैं जो आज के युग में सशक्तता की मिसाल बन चुकी थी.
     अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश बार कौंसिल अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुई कुमारी दरवेश यादव एडवोकेट की उनके साथी अधिवक्ता मनीष शर्मा ने कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केवल इसलिये हत्या कर दी कि दरवेश उनकी इच्छा के विरूद्ध एक पुलिस अधिकारी से मिलती थी जबकि मनीष शादी शुदा थे और दरवेश केवल उनकी साथी अधिवक्ता थी, न तो वह उनकी बहन थी और न ही उनसे किसी भी भावनात्मक रिश्ते में बंधी थी, केवल साथ काम करने के कारण मनीष शर्मा एडवोकेट उन पर ऐसे अधिकार समझने लगे जैसे वे उनकी संपत्ति हों.
         ऐसे ही उत्तर प्रदेश के एटा जिले की जलेसर कोर्ट में सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर तैनात कुमारी नूतन यादव को उसके पुलिस क्वार्टर में हत्यारे द्वारा मुंह में पांच गोलियों के फायर कर मार दिया गया और पुलिस को प्राप्त काल डिटेल से पता लगता है कि नूतन के मंगेतर की काल ज्यादा थी और हत्यारे की कम, जिससे कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह ज़ाहिर होता है कि हत्यारे ने नूतन द्वारा खुद से अधिक मंगेतर को तरजीह दिए जाने पर हत्याकांड को अन्जाम दिया और ऐसा उसके द्वारा समाज में घर से बाहर निकली लड़की को अपनी संपत्ति सोच कर किया गया.
       ये तो मात्र दो एक किस्से व हमारे देश के जिम्मेदार नेताओं के बयान हैं, जबकि देखा जाए तो स्थिति बहुत ज्यादा बदतर है. लड़कियों को इंसान का दर्जा न किसी पुरुष द्वारा, न परिवार द्वारा, न समाज द्वारा और न ही देश के प्रबुद्ध नागरिकों, नेताओं, समाजसेवियों द्वारा दिया जाता है बल्कि उनके द्वारा उन्हें पग पग पर अपनी सामाजिक कमजोर स्थिति का आकलन कर ही कुछ करने के निर्देश दिए जाते हैं और जहां कोई लड़की हिम्मत कर ऐसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए खड़ी होती है तो उसके लिए अनर्गल प्रलाप कर उसे नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है या फिर उसकी दरवेश यादव या नूतन यादव की तरह हत्या कर दी जाती है.   शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)


शनिवार, 3 अगस्त 2019

सृजन पत्रिका में मेरा आलेख


आज यदि देखा जाये तो महिलाओं के लिए घर से बाहर जाकर काम करना ज़रूरी हो गया है और इसका एक परिणाम तो ये हुआ है कि स्त्री सशक्तिकरण के कार्य बढ़ गए है और स्त्री का आगे बढ़ने में भी तेज़ी आई है किन्तु इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं हुए हैं जहाँ एक तरफ महिलाओं को कार्यस्थल के बाहर के लोगों से खतरा बना हुआ है वहीँ कार्यस्थल पर भी यौन शोषण को लेकर  उसे नित्य-प्रति नए खतरों का सामना करना पड़ता है .
कानून में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पहले भी काफी सतर्कता बरती गयी हैं किन्तु फिर भी इन घटनाओं पर अंकुश लगाया जाना संभव  नहीं हो पाया है.इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय का ''विशाखा बनाम राजस्थान राज्य ए.आई.आर.१९९७ एस.सी.सी.३०११ ''का निर्णय विशेष महत्व रखता है इस केस में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने महिलाओं के प्रति काम के स्थान में होने वाले यौन उत्पीडन को रोकने के लिए विस्तृत मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये हैं .न्यायालय ने यह कहा ''कि देश की वर्तमान सिविल विधियाँ या अपराधिक विधियाँ काम के स्थान पर महिलाओं के यौन शोषण से बचाने के लिए पर्याप्त संरक्षण प्रदान नहीं करती हैं और इसके लिए विधि बनाने में काफी समय लगेगा ;अतः जब तक विधान मंडल समुचित विधि नहीं बनाता है न्यायालय द्वारा विहित मार्गदर्शक सिद्धांत को लागू किया जायेगा .

न्यायालय ने ये भी निर्णय दिया कि ''प्रत्येक नियोक्ता या अन्य व्यक्तियों का यह कि काम के स्थान या अन्य स्थानों में चाहे प्राईवेट हो या पब्लिक ,श्रमजीवी महिलाओं के यौन उत्पीडन को रोकने के लिए समुचित उपाय करे .इस मामले में महिलाओं के अनु.१४,१९ और २१ में प्रदत्त मूल अधिकारों को लागू करने के लिए विशाखा नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने लोकहित वाद न्यायालय में फाईल किया था .याचिका फाईल करने का तत्कालीन कारण राजस्थान राज्य में एक सामाजिक महिला कार्यकर्ता के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना थी .न्यायालय ने अपने निर्णय में निम्नलिखित मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये-
[१] सभी नियोक्ता या अन्य व्यक्ति जो काम के स्थान के प्रभारी हैं उन्हें  चाहे वे प्राईवेट क्षेत्र में हों या पब्लिक क्षेत्र में ,अपने सामान्य दायित्वों के होते हुए महिलाओं के प्रति यौन उत्पीडन को रोकने के लिए समुचित कदम उठाना चाहिए.
[अ] यौन उत्पीडन पर अभिव्यक्त रोक लगाना जिसमे निम्न बातें शामिल हैं -शारीरिक  सम्बन्ध और प्रस्ताव,उसके लिए आगे बढ़ना ,यौन सम्बन्ध के लिए मांग या प्रार्थना करना ,यौन सम्बन्धी छींटाकशी   करना ,अश्लील साहित्य या कोई अन्य शारीरिक मौखिक या यौन सम्बन्धी मौन आचरण को दिखाना आदि.
[ब]सरकारी या सार्वजानिक क्षेत्र के निकायों के आचरण और अनुशासन सम्बन्धी नियम [१] सभी नियोक्ता या अन्य व्यक्ति जो काम के स्थान के प्रभारी हैं उन्हें  चाहे वे प्राईवेट क्षेत्र में हों या पब्लिक क्षेत्र में ,अपने सामान्य दायित्वों के होते हुए महिलाओं के प्रति यौन उत्पीडन को रोकने के लिए समुचित कदम उठाना चाहिए.
[अ] यौन उत्पीडन पर अभिव्यक्त रोक लगाना जिसमे निम्न बातें शामिल हैं -शारीरिक  सम्बन्ध और प्रस्ताव,उसके लिए आगे बढ़ना ,यौन सम्बन्ध के लिए मांग या प्रार्थना करना ,यौन सम्बन्धी छींटाकशी  करना ,अश्लील साहित्य या कोई अन्य शारीरिक मौखिक या यौन सम्बन्धी मौन आचरण को दिखाना आदि.
[ब]सरकारी या सार्वजानिक क्षेत्र के निकायों के आचरण और अनुशासन सम्बन्धी नियम या विनियमों में यौन उत्पीडन रोकने सम्बन्धी नियम शामिल किये जाने चाहिए और ऐसे नियमों में दोषी व्यक्तियों के लिए समुचित दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए .
[स] प्राईवेट क्षेत्र के नियोक्ताओं के सम्बन्ध में औद्योगिक नियोजन [standing order  ]अधिनयम १९४६ के अधीन ऐसे निषेधों को शामिल किया जाना चाहिए.
[द] महिलाओं को काम,आराम,स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञानं के सम्बन्ध में समुचित परिस्थितियों का प्रावधान होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया  जाना चाहिए  कि महिलाओं को काम के स्थान में कोई विद्वेष पूर्ण वातावरण न हो उनके मन में ऐसा विश्वास करने का कारण हो कि वे नियोजन आदि के मामले में अलाभकारी स्थिति में हैं .
[२] जहाँ ऐसा आचरण भारतीय दंड सहिंता या किसी अन्य विधि के अधीन विशिष्ट अपराध होता हो तो नियोक्ता को विधि के अनुसार उसके विरुद्ध समुचित प्राधिकारी को शिकायत करके समुचित कार्यवाही प्रारंभ करनी चाहिए .
[३]यौन उत्पीडन की शिकार महिला को अपना या उत्पीडनकर्ता  का स्थानांतरण करवाने का विकल्प होना चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि ''किसी वृत्ति ,व्यापार  या पेशा के चलाने के लिए सुरक्षित काम का वातावरण होना चाहिए .''प्राण के अधिकार का तात्पर्य मानव गरिमा से जीवन जीना है ऐसी सुरक्षा और गरिमा की सुरक्षा को समुचित कानून द्वारा सुनिश्चित कराने तथा लागू करने का प्रमुख दायित्व विधान मंडल और कार्यपालिका का है किन्तु जब कभी न्यायालय के समक्ष अनु.३२ के अधीन महिलाओं के यौन उत्पीडन का मामला लाया जाता है तो उनके मूल अधिकारों की संरक्षा के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत विहित करना ,जब तक कि  समुचित विधान नहीं बनाये जाते उच्चतम न्यायालय का संविधानिक कर्त्तव्य है.

इस प्रकार यदि इस निर्णय के सिद्धांतों को नियोक्ताओं द्वारा प्रयोग में लाया जाये तो श्रमजीवी महिलाओं की स्थिति में पर्याप्त सुधार लाया जा सकता है.
शालिनी कौशिक 
एडवोकेट 
 [कानूनी ज्ञान ]
सृजन पत्रिका

बुधवार, 31 जुलाई 2019

मुस्लिम परिवार....... आज के दैनिक जनवाणी में प्रकाशित

 सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2017 में तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था। दो जजों ने इसे असंवैधानिक कहा था, एक जज ने पाप बताया था। इसके बाद दो जजों ने इस पर संसद को कानून बनाने को कहा था।
        इसी क्रम में सरकार ने इसके लिए कानून तैयार किया और लोकसभा में इसे पास कराया. राज्यसभा में संख्या बल कम होने के चलते इसे पास कराने में दिक्कत थी किन्तु विपक्ष के एकजुट न होने व सदन से बहिर्गमन के चलते तीन तलाक विधेयक मंगलवार को राज्यसभा में भी पास हो गया राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पर करीब चार घंटे चली बहस के बाद यह पारित हुआ।  राष्ट्रपति की सहमति के बाद तीन तलाक का विधयेक कानून बन जाएगा।
*क्या हैं तीन तलाक विधेयक के प्रावधान
*तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक देना गैर कानूनी
*तीन तलाक संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान, यानी पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन तब जब महिला खुद शिकायत करेगी
*खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी केस दर्ज करने का अधिकार
*पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है
*मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक (एसएमएस, ईमेल, वॉट्सऐप) पर तलाक को अमान्य करार दिया गया
*आरोपी पति को तीन साल तक की सजा का प्रावधान
मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है
*आरोपी को जमानत तभी दी मिलेगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुना जाएगा
*पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है
*पीड़ित महिला पति से गुजारा भत्ते का दावा कर सकती है
महिला को कितनी रकम दी जाए यह जज तय करेंगे
*पीड़ित महिला के नाबालिग बच्चे किसके पास रहेंगे इसका फैसला भी मजिस्ट्रेट ही करेगा
           मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि अब उनकी स्थिति मजबूत होगी किन्तु अगर हम विधेयक की गहराई में जाते हैं तो साफ तौर पर पाते हैं कि ये मजबूती मुस्लिम विवाह को बुरी तरह से हिला देगी क्योंकि विपक्ष का विरोध जिस मुद्दे को लेकर था वह अब भी जस का तस है.
. विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा कि एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को आपराधिक कृत्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इस प्रथा को उच्चतम न्यायालय ‘शून्य एवं अमान्य’ करार दे चुका है।
     दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा कि तीन तलाक को लेकर कानून बनाने की क्या जरूरत थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही इसे अवैध करार दिया है।
      और ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो केस में फैसला देते हुए तुरंत तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया और जब कोई कार्य असंवैधानिक है तो वह किसी भी कानून द्वारा मान्य नहीं है ऐसे में उसके किए जाने पर क्या मान्यता मिलना या क्या अपराध हो जाना किन्तु केंद्र सरकार ने इस असंवैधानिकता को अपराध के दायरे में रखा और मुस्लिम परिवार को तोड़ने का और मुस्लिम महिलाओं के दर दर भटकने का पूरा इंतजाम कर दिया.
       अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा कि जैसे ही कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को तलाक तलाक तलाक कहता है और मुस्लिम पत्नी इसकी शिकायत कर देती है तो यह एक संज्ञेय अपराध होगा और पुलिस मुस्लिम पति को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकेगी और वह तीन साल की सज़ा के अधीन होगा मतलब ये कि उस मुस्लिम पत्नी को उसका पति तीन तलाक दे तो वह बेसहारा और वह इसकी शिकायत करे तो भी बेसहारा क्योंकि पति अगर जेल गया तो कौनसा पुलिस थाना या कौनसी कोर्ट उसके व उसके बच्चों के लिए रोटी कपड़ा मकान का इंतज़ाम कर रही है और उस पर जुमले ये कि
    "राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास होने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नारी गरिमा की रक्षा के लिए तीन तलाक बिल का पास होना जरूरी था।"
     पीएम ने कहा कि तीन तलाक बिल का पास होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है. तुष्टिकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया. मुझे इस बात का गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ है.पीएम ने कहा कि एक पुरातन और मध्यकालीन प्रथा आखिरकार इतिहास के कूड़ेदान तक ही सीमित हो गई है.
    अब इन्हें कौन बताए कि महिला गरिमा व अस्मिता की रक्षा के लिए पहले ज़रूरी ये है कि उसका व उसके बच्चों का पेट भरा हो और वह अपने दम पर पारिवारिक रूप से सशक्त हो क्योंकि कोई भी लड़ाई तभी मजबूती से लडी जा सकती है जब वह मजबूत आधार से लडी जाए, फिर विवाह के बाद पत्नी का जीवन आधार पति ही होता है और तीन तलाक मुस्लिम पत्नी के जीवन में जो शून्यता उत्पन्न करता है वह शून्यता तो सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अमान्य व असंवैधानिक घोषित करके ही भर दी थी केंद्र सरकार द्वारा तो तीन तलाक से मुस्लिम पति द्वारा खोदी गई खाई को और चौड़ी करने का ही काम किया गया है पाटने का नहीं और यह भारतीय संस्कृति के भी खिलाफ है क्योंकि भारतीय संस्कृति परिवार को बसाने मे विश्वास रखती है उजाड़ने मे नही और अब की यह केंद्र सरकार मुस्लिम पुरातन व मध्यकालीन प्रथा को कूड़ेदान मे सीमित करने के नाम पर मुस्लिम परिवार को ही कूड़ेदान में सीमित करने लग गई है. इसलिए अब मुस्लिम परिवार का स्थायित्व खुदा के ही भरोसे है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)