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शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

Published in Janwani ''PATHAKVANI'' on 10 july 2015


image/jpg: Senior BJP leader Kalyan Singh, during an election campaign rally in Mathura on Sunday night.
Governor of Rajasthan and chancellor Kalyan Singh on Tuesday once again created a controversy by suggesting that the word ‘adhinayak’ in the national anthem should be removed as it praises the British rulers of pre-Independence era.
गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर भारत के बँगला साहित्य के शिरोमणि कवि थे.
उनकी कविता में प्रकृति के सौंदर्य और कोमलतम मानवीय भावनाओं का उत्कृष्ट चित्रण है.
"जन गण मन" उनकी रचित एक विशिष्ट कविता है जिसके प्रथम छंद को हमारे राष्ट्रीय गीत होने का गौरव प्राप्त है.
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर, काव्यालय की ओर से, आप सबको यह कविता अपने मूल बंगला रूप में प्रस्तुत है.
बंगला मूल
जन गण मन
शब्दार्थ
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह तव आह्वान प्रचारित
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन
पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गाँथा
जन गण ऐक्य विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
अहरह: निरन्तर; तव: तुम्हारा
शुनि: सुनकर
आशे: आते हैं
पाशे: पास में
हय गाँथा: गुँथता है
ऐक्य: एकता
पतन-अभ्युदय-बन्धुर-पंथा
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथचक्रे मुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-त्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
अभ्युदय: उत्थान; बन्धुर: मित्र का
धावित: दौड़ते हैं
माझे: बीच में
त्राता: जो मुक्ति दिलाए
परिचायक: जो परिचय कराता है
घोर-तिमिर-घन-निविड़-निशीथे
पीड़ित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल
नत-नयने अनिमेष
दुःस्वप्ने आतंके
रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
निविड़: घोंसला
छिल: था
अनिमेष: अपलक
करिले: किया; अंके: गोद में
रात्रि प्रभातिल उदिल रविछवि
पूर्व-उदय-गिरि-भाले,
गाहे विहन्गम, पुण्य समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रभातिल: प्रभात में बदला; उदिल: उदय हुआ
* * *
कल्याण सिंह जो इस वक्त राजस्थान के राज्यपाल हैं ने एक बार फिर साबित किया है कि भाजपाई देश के बारे में बहुत ही कम और अधिकांशतया गलत ज्ञान ही रखते हैं .उन्होंने अधिनायक शब्द को अंग्रेजों से जोड़कर इसे हटाने की मांग की है जबकि वे स्वयं जानते हैं कि हमारा देश गणतंत्र है और यहाँ जनता का शासन है ऐसे में इसके रचनाकाल के समय भले ही अंग्रेजों का शासन रहा हो भले ही इसकी रचना १९११ में की गयी हो किन्तु जिस वक्त इसे राष्ट्रीय गान के रूप में स्थापित किया गया देश गणतंत्र घोषित किया जा रहा था और देश पर हम भारत के लोगों का ही राज्य स्थापित हो रहा था क्योंकि यह सब हमारे देश के संविधान के अंतर्गत किया जा रहा था जिसकी प्रस्तावना में मुख्य शब्द ही '' हम भारत के लोग '' हैं इसलिए कल्याण सिंह जी को याद रखना चाहिए कि हम ही इस देश के अधिनायक हैं और इसे देश के राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार करने वाले इस देश के लिए अपने प्राणों की परवाह न कर देश पर अपना सर्वस्व लुटाने वाले न कि सत्ता की खातिर अपमान के घूँट पीकर वापस उसी पार्टी में लौटने वाले जिस के अपने संगी-साथियों की विचारधारा पर वे स्वयं ही ऊँगली उठा चुके थे और स्वयं इस पार्टी के खिलाफ मैदान में उतर चुके थे .
अंत में ,उन्हें एक बात और याद कर लेनी चाहिए कि जिन रविन्द्र नाथ टैगोर जी के द्वारा लिखित ''जन-गण-मन'' में अधिनायक शब्द को वे अंग्रेजों के प्रति भक्ति से जोड़ रहे हैं उन्ही रविन्द्र नाथ जी ने जलियाँ वाला कांड के विरोध में अंग्रेजों द्वारा दी गयी '' नाइट-हुड '' की उपाधि को लौटा दिया था .
Published in Janwani ''PATHAKVANI'' on 10 july 2015

शालिनी कौशिक
[कौशल]

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