सवाल ये उठता है कि क्या वाकई लड़कियाँ कोई चीज़ या कोई सम्पत्ति हैं कि उनका जिसने जैसे चाहा इस्तेमाल कर लिया और ऐसा नहीं है कि यहां बात केवल भोली नादान लड़कियों की है बल्कि यहां हम बात ऐसी लड़कियों की भी कर रहे हैं जो आज के युग में सशक्तता की मिसाल बन चुकी थी.
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश बार कौंसिल अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुई कुमारी दरवेश यादव एडवोकेट की उनके साथी अधिवक्ता मनीष शर्मा ने कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केवल इसलिये हत्या कर दी कि दरवेश उनकी इच्छा के विरूद्ध एक पुलिस अधिकारी से मिलती थी जबकि मनीष शादी शुदा थे और दरवेश केवल उनकी साथी अधिवक्ता थी, न तो वह उनकी बहन थी और न ही उनसे किसी भी भावनात्मक रिश्ते में बंधी थी, केवल साथ काम करने के कारण मनीष शर्मा एडवोकेट उन पर ऐसे अधिकार समझने लगे जैसे वे उनकी संपत्ति हों.
ऐसे ही उत्तर प्रदेश के एटा जिले की जलेसर कोर्ट में सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर तैनात कुमारी नूतन यादव को उसके पुलिस क्वार्टर में हत्यारे द्वारा मुंह में पांच गोलियों के फायर कर मार दिया गया और पुलिस को प्राप्त काल डिटेल से पता लगता है कि नूतन के मंगेतर की काल ज्यादा थी और हत्यारे की कम, जिससे कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह ज़ाहिर होता है कि हत्यारे ने नूतन द्वारा खुद से अधिक मंगेतर को तरजीह दिए जाने पर हत्याकांड को अन्जाम दिया और ऐसा उसके द्वारा समाज में घर से बाहर निकली लड़की को अपनी संपत्ति सोच कर किया गया.
ये तो मात्र दो एक किस्से व हमारे देश के जिम्मेदार नेताओं के बयान हैं, जबकि देखा जाए तो स्थिति बहुत ज्यादा बदतर है. लड़कियों को इंसान का दर्जा न किसी पुरुष द्वारा, न परिवार द्वारा, न समाज द्वारा और न ही देश के प्रबुद्ध नागरिकों, नेताओं, समाजसेवियों द्वारा दिया जाता है बल्कि उनके द्वारा उन्हें पग पग पर अपनी सामाजिक कमजोर स्थिति का आकलन कर ही कुछ करने के निर्देश दिए जाते हैं और जहां कोई लड़की हिम्मत कर ऐसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए खड़ी होती है तो उसके लिए अनर्गल प्रलाप कर उसे नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है या फिर उसकी दरवेश यादव या नूतन यादव की तरह हत्या कर दी जाती है. शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
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